Tera Zikr Ho..
>> Thursday, March 5, 2009
तेरा ज़िक्र हो, तेरी फ़िक्र हो…
तेरा नाम लूँ, तेरी याद हो…
एक मेहरबानी यह कर सनम,
मैं बीमार-ए-इश्क़ तेरे नाम की…
मेरी ख़ैरियत मुझसे पूछ ले,
कहीं अफ़सोस ना मेरे बाद हो…
मैं खिज़ा सही, मुझे प्यार कर,
यूँ तलब ना कर तू बहार की…
ऐसे समेट ले मुझे धड़कन मे,
कि ना खुश्बू ये फिर आज़ाद हो…
तुम इतिहास हो मेरी साँसों का,
तुम आवाज़ हो मेरी पुकार की…
रुक जाओ आकर मेरे पहलू मे,
यही फरियाद आख़िरी फरियाद हो…
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Tera zikr ho, Teri fikr ho…
Tera naam loon, Teri yaad ho…
Ek meherbaani yeh kar sanam,
Main beemar-e-ishq tere naam ki…
Meri khairiyat mujhse pooch le,
Kahin afsos naa mere baad ho…
Main khizaa sahi, Mujhe pyaar kar,
Yun Talab naa kar tu bahaar ki…
Aise samet le mujhe dhadkan mein,
Ki naa khushboo ye phir azaad ho…
Tum Itihaas ho meri saanson ka,
Tum Aawaaz ho Meri Pukaar ki…
Rukk jao aakar mere pehlu mein,
Yehi Fariyaad aakhiri fariyaad ho…
12 comments:
क्या बात है इस जिक्र में।
अच्छा लिखा है आपने ...
खूब लिखा जी.
एक मेहरबानी यह कर सनम,
मैं बीमार-ए-इश्क़ तेरे नाम की…
मेरी ख़ैरियत मुझसे पूछ ले,
कहीं अफ़सोस ना मेरे बाद हो…
मेरे लफ़्जों में.
तेरा जिक्र हो और न कोई बात हो
बस नाम तेरा और न कुछ याद हो
तू मिले तो खुशी से हो आंख नम
गर बिछडे तो आंसूओं की बरसात हो
तुक मिलाया है यार
मैं खिज़ा सही, मुझे प्यार कर,
यूँ तलब ना कर तू बहार की…
ऐसे समेट ले मुझे धड़कन मे,
कि ना खुश्बू ये फिर आज़ाद हो…
बहुत बढ़िया बहुत खूब ....
बहुत अच्छी रचना है!
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चाँद, बादल और शाम
तू है जब तलक मेरी नज़रों में,
तब ही तलक मैं रहूँ यहाँ,
न ख़ुदा करे मेरी ज़िन्दगी ,
तेरे जाने के भी बाद हो .
आपकी क़लम का बदला मिजाज़ और अंदाज़ बहुत ही सुन्दर है.
बहुत ही खूबसूरत .
हम धरती पर प्यार से जी सकें,गर ये हो
तो यही हमसब पर हमारा धन्यवाद हो !!
हमारे आदमी होने में ही भलाई है सच
हम आदमियों से हमारी दुनिया आबाद हो !!
हम हर उस किसी के काम आ सकें याँ पे
जिस किसी की भी याँ जिन्दगी नासाज हो !!
धरती पर बहुतों को प्यार से हम याद आ सकें
इतना बेहतरीन जीकर हम याँ से खैरबाद हों..!!
आसमान हर किसी का ही तो है "गाफिल"
अच्छा हो कि हर किसी का यहाँ परवाज हो !!
वाकई आपने तो बहुत प्यारा लिखा है
बहुत बढ़िया ...
मैं खिज़ा सही, मुझे प्यार कर,
यूँ तलब ना कर तू बहार की…
ऐसे समेट ले मुझे धड़कन मे,
कि ना खुश्बू ये फिर आज़ाद हो…
behtareen rachna hai...
sunder likha hai
Bhoot achche rachna likhi aapne shikha ji aapka kavita likhne ka tarika bilkul natural hain dil or dimaak 2no se shayri likhte ho bhagwan aapko khush rakhe ....
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